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रामाज्ञा प्रश्न / तृतीय सर्ग / सप्तक ७ / तुलसीदास

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नाथ हाथ माथे धरेल प्रभु मुदरी मूँह मेलि।
चलेउ सुमिरि सारंगधर, आनिहि सिद्धि सकेलि॥१॥
प्रभुने मस्तकपर हाथ रखा, (उनकी) अँगूठी मुखमें रखकर उन शारंगधनुषधारीका स्मरण करके (हनुमान‌जी) चले, वे सफलताओंको समेट लायेंगे॥१॥
(यात्राके लिये उत्तम प्रश्नम फल है।)

संग नील नल कुमुद गद जामवंत जुबराज।
चले राम पद नाइ सिर सगुन सुमंगल साज॥२॥
साथमें नील, नल कुमुद गद जाम्बवान और युवराज अंगद श्रीरामके चरणोंमें मस्तक झुकाकर चले। यह शकुन कल्याण देनेवाल है॥२॥

पैठि बिबर मिलि तापसिहि अँचइक पानि फलु खाइ।
सगुन सिद्ध साधक दरस अभिमत होइ अघाइ॥३॥
(हनुमानजी आदि वानर वीर) गुफामें प्रविष्ट होकर तपस्विनीसे मिले, वहाँ जल पिया और फल खाये। इस शकुनका फल है कि किसी साधकका दर्शन होगा और अभीष्ट कार्य पूर्ण रूपसे सफल होगा॥३॥

बनचर बिकल बिषाद बस, देखि उदधि अवगाह।
असमंजस बढ़ सगुन गत, बिधि बस होइ निबाह॥४॥
अथाह समुद्रको देखकर सभी वानर दुःखसे व्याकुल हो गये। शकुनका फल यह है कि जो भारी कठिनाई आयी है, वह बीत जायगी और भाग्यवश उससे छुटकारा हो जायगा॥४॥

सब सभीत संपाति लखि हहरे हृदयँ हरास।
कहत परस्पर गीध गति, परिहरि जीवन आस॥५॥
सम्पाती गीधको देखकर सभी (वानर) डर गये; हृदयमें निराशासे खिन्न ह गये। जीवित रहनेकी आशा छोड़कर परस्पर जटायुकी सद्गतिका वर्णन करने लगे॥५॥
(अकस्मात् भय प्राप्त होगा।)

नव तनु पाइ देखाइ प्रभु महिमा कथा सुनाइ।
धरहु धीर साहस करहु मुदित सीय सुधि पाइ॥६॥
नवीन शरीर पाकर प्रभुकी महिमा (प्रत्यक्ष) दिखलाकर तथा (अपनी) कथा * सुनाकर सम्पातीने कहा - धैर्य धारण करो। साहस बटोरो। सीताजीका समाचार पाकर प्रसन्न होगे॥६॥
(कठिनाईसे पार होनेका मार्ग मिलेगा।)

तुलसी राम प्रभाउ कहि मुदित चले संपाति।
सुभ तीसर उनचास भल सगुन सुमंगल पाँति॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामके प्रभावका वर्णन करके सम्पाती प्रसन्न होकर चले गये। तीसरे सर्गका यह उनचासवाँ दोहा उत्तम शकुन है, आनन्द-मंगलकी पंक्ति (बहुत ही कल्याणकारी) है॥७॥


  • गरुड़जीके बड़े भाइ अरुणके दो पुत्र थे- सम्पाती और जटायु॥ ये दोनों भाई बालके गर्वसे सूर्यका स्पर्श करने ऊपर उडे़। सूर्यका प्रचण्ड ताप सहन न होनेसे जटायु तो लौट आये; किन्तु उनके बड़े भाई सम्पाती ऊपर उड़ते ही गये। अन्तमें उनके पंख भस्म हो गये॥ वे गिर पड़े। संयोगवश उन्हें एक चन्द्रमा नामके मुनिने देख लिया॥ मुनिने उन्हें आश्र्वासन दिया कि श्रीरामके दूत जब सीताजीको ढूँढ़ते यहाँ आयेंगे तब उनके दर्शनसे तुम्हारे ये पंख फिर उग जायँगे, वानरोंके दर्शनसे सम्पातीके पंख उग आये।