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राही / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

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राही, पल भर पथ पर बैठो !

तुमसे कुछ उम्मीद लगाए
पेड़ों से पत्ते झरते हैं,
कोई इनके दुख पूछेगा,
कब से ये आशा करते हैं,
कोई इनकी सुनता पलभर
इतनी फ़ुरसत किसको !
राही, पल भर पथ पर बैठो !!

आगे है मैदान कि मीलों
जहाँ न तरु की छाया,
आगे है मैदान कि जिसमें
मरकर जीती काया !
कोमल तन हो, सह न सकोगे
आन्धी को, अन्धड़ को !
राही, पल भर पथ पर बैठो !!

पल भर को भूलो विपदाएँ
पल भर हंसकर जी लो,
माना, गरल तुम्हें भाता है,
फिर भी, अमृत पीलो !
जग का जीवन विष करता है,
अमृत के अमृत को !
राही, पल भर पथ पर बैठो !!