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रेज़ा रेज़ा ख़्वाब हो गये / पवन कुमार

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रेज़ा रेज़ा ख़्वाब हो गये
क’स्मे वादे कहीं खो गये

हर लम्हा इक युग सा बीता
जब से वो परदेस को गये

एक बोझ था जीवन अपना
झुके थे कांधे मगर ढो गये

मैं जागूँ और चाँद भी जागे
तारे नदिया सभी सो गये

कुछ बेढब से हर्फ़ लिखे थे
कैसे सब अशआर हो गये

जनम-जनम की बातें छोड़ो
अभी किसी के कहाँ हो गये