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लाक्षारस के समान / अनुराधा पाण्डेय
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लाक्षारस के समान, तरुणी के गात देख, एक सांस में ही अलि, चाहे मद्य पान हो।
धवल-सी दंतपंक्ति, हीरक समान कांति, यौवन उद्दाम देख, भाव रतिमान हो।
तरुणी की तरुणाई, यौवन की अँगड़ाई, निरखि के काम मन, क्यों न मूर्त मान हो।
मेखला की रुनझुन, कौन न विकल सुन, रस सिक्त राग जब, कोकिल समान हो।