लार्होॅ / अमरेन्द्र
हमरोॅ माय, गाय माय
कहना छै तोहरा कुछ आय
की होतै तोरा सेॅ छिपाय
हम्में तेॅ छौं पाँच भाय
पाँचोॅ में हम्मी छोटोॅ
जेना मटर में राय-गोटोॅ
हमरोॅ की औकात छै
भैय्या के की बात छै
हिन्नें दूध दुहावै छै
हुन्नें सेॅ सब आवै छै
कोय गारथैं, कोय गरम-गरम
पीयै गटगट, करै हजम
जब तक आवौं टुघुर-टुघुर
पीते देखौं टुकुर-टुकुर
देतै की ? तेॅ चिढ़ाबै छै
गुस्सा केन्होॅ बढ़ावै छै
जानथैं छै, यें करतै की ?
टानी लै छै दूध-दही ।
हमरोॅ माय, गाय माय
कहना छै तोरा कुछ आय
सबके माय कहावै छोॅ
कत्तेॅ तोहें सुहावै छोॅ
मैय्यो सेॅ तोहों उच्चोॅ
पूँछोॅ तोहरोॅ नै बुच्चोॅ
गोरोॅ-गोरोॅ देह केहनोॅ
सुद्धी छोॅ हमरे जेहनोॅ
सबटा दूध दुहाय दै छौ
है नै, लेरु पिलाय दै छौ
हमरौ तेॅ तोहें मानथै छौ
हालो सबटा जानथै छोॅ
चुरु भरी नै दूध मिलै
खाय वक्ती नै जीभ हिलै
मैय्यो उल्टे डाँटै छै
बड़कै में सब बाँटै छै
आबेॅ एकठोॅ तोहरे आस
यही विचारी ऐलौं पास
लेरु जरा हटावोॅ नी
हिन्नौ दूध बढ़ावोॅ नी
देखोॅ बाटी आनलेॅ छी
पानी मेॅ रोटी सानलेॅ छी
रोटी दूध सेॅ सानी जा
एतना टा तोहें मानी जा
तोहरे किरिया जों जैभौं
घुरी-फिरी केॅ नै ऐभौं ।