लिए बुढ़ि माँ आखों में आंसू / विरेन सांवङिया
लिए बुढ़ि माँ आखों में आंसू
शिश झुकाएं बैठी थी
बेटों के बंटवारे में आज
दोनों बहुएं ऐठी थी
थाली और कटोरे बाटे
बाटे चाकी चूल्हे थे
खेत जायदाद बाट लिए
बस माँ अपनी को भूले थे
कुछ दर्द भरा था सीने में
कुछ ममत्व ने भी रोक लिया
पर फिर हिम्मत सी करके कुछ
उस बुढ़ि माँ ने बोल दिया
सन्नाटा सा छाया फिर
उस बंटवारे के किस्से में
जब बुढ़ि माँ ने पूछा लिया के
मैं हूँ किसके हिस्से में
जवाब मिला ना माँ को कुछ भी
बहुओं का हद सौर सहा
गला सूख गया था माँ का
फिर पानी के लिए और कहा
ना घर बडे के जाना हो
ना जाना हो छोटे के घर
एक आस लगाए बैठी हूँ
तेरे पास बुला ले हे ईश्वर
ना पानी लेकर आए बेटे
ना माँ बेटो की ओर गई
सुबह शरद की में जब देखा
वो माँ सबसे रिश्ता तोड़ गई