भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लिछमी / हरीश हैरी
Kavita Kosh से
नवी बीनणी
घर में आंवतै बगत
पगथळी में
धान सूं भरयोड़ै
कुल्हडिये रै
पग री ठोकर लगाई
खिंडेङै धान नै देख'र
लुगाईयां केवै ही
लिछमी आई है!