भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लूओं पर चढ़ घुमर घिरती... / कालिदास
Kavita Kosh से
|
लूओं पर चढ़ घुमर घिरती धूलि रह-रह हरहरा कर
चण्ड रवि के ताप से धरती धधकती आर्त्र होकर
प्रिय वियोग विदग्ध मानस जो प्रवासी तप्त कातर
असह लगता है उन्हें यह यातना का ताप दुष्कर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !