भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ले आये बगिया से / अनुभूति गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ले आये बगिया से
फूलों को नोंचकर,
बगिया को चिन्तित
होने को छोड़कर।

अब-
क्या करोगे इनका
सुगन्ध से इनकी
अभिभूत होगे?
फिर, कुछ मिनटों बाद
गैलरी में हाथों से
मसलकर फेक दोगे।

क्या मिलता है
तुम्हें ये सब करके?
बगिया के हृदय को
दुःखों से भरके।

बड़ा मदमाते हो
हँसते हो अभिमान से,
स्तर में हीन हो
तुम तो
ड्योढ़ी पर पड़े
पायदान-से।