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लोरे घोंट पीय ऽ ही / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
सुबुक सुबुक रोवऽ हइ सुगना
मइया देगे रोटी अँचरा से पोछऽ हइ मइया
ढर-ढर अँखिया टोंटी
माटी काटे बाऊ गेलउ
ठिकदरवा के पाला
ठकहर आठ दिन अब बीतल
साँझ हउ आवेवाला
कुइयाँ जइसन आँत धसल हे
दूध के सूटपल सोती
घूमल घूमल लेले जिलेबी दउड़ल बाऊ अइथुन
गोदी में बइठा के तोरा अप्पन हाथ खिलइथुन
बुतरू मुसकल तनी सा हुलसल
फूटल आस के जोती
कोय न´ बूझे भितरे मारल
हमर तोर ई दुखड़ा
मुखिया कम्मल सबके देलक
हमरा न´ इक टुकड़ा
पेउन सटल साड़ी हम्मर है
चिरीचोंथ ओक्कर धोती
बस तोरे मुँह देख के सुगना
मर मर हम जीयऽ ही
खटल मजूरी पर हे आफत
लोरे घोंट पियऽ ही
देखऽ वह आ रहलउ बाऽ
लाल होतउ तोर गोटी।