भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वज़न/ जयप्रकाश मानस
Kavita Kosh से
धरती का वैभव उँचाई आकाश की
सूरज की चमक या हो
चंदा की चांदनी
पूरी भलमनसाहत
सारा-का-सारा पुण्य
समूची पृथ्वी पलड़े में
चाहे रख दो सावजी
डोलेगा नहीं काँटा
रत्ती भर
किसी ने रख दिया है चुपके से
रत्ती भर प्रेम दूसरे पलड़े में