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विराग / दीनदयाल गिरि
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एहो त्याग मृगेस तुम बिन यह तन बनराज ।
करत स्यार कामादि ह्वै स्वतन्त्र सिरताज ।।
ह्वै स्वतन्त्र सिरताज फिरत कूकत कै फूलै ।
किन गज्जत घननाद पराक्रम कित वह भूले ।।
बरनै दीनदयाल त्रास जौलों नहिं देही ।
तौलों नहिं ये कूर कढ़ैंगे हिय तें एहो ।। ५३।।