भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विशद पीड़ा / दरवेश भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झंझावात विशद पीड़ा का उठता है जब,
होता है आभास हृदय फट जायेगा।

 एक मधु मुस्कान पाकर;
 आयु-भर आँसू बहाये,
 तिलमिलाये, सकपकाये।
 एक मधुमय गीत गाकर,
 शैल विपदा के उठाये॥
वीणा-तारों से स्वर कभी उभरता है जब।
होता है आभास हृदय फट जायेगा॥

 स्वप्न थे कितने सजाये;
 नेह-आशा में हृदयवर!
 किन्तु मेरे प्राण-मधुकर,
 पान रस का कर न पाये,
 रह गया जीवन बिखरकर॥
असफल चाहों का अरमान सिसकता है जब।
होता है आभास हृदय फट जायेगा॥