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जीने की अदा जाने / इस्मत ज़ैदी

110 bytes added, 05:27, 10 दिसम्बर 2010
<poem>
है दुनिया की कुछ परवा ,न कुछ अच्छा बुरा जाने
कोई समझे क़लंदर <ref>फ़क़ीर</ref> उस को और कोई गदा <ref>भिखारी, भिक्षुक</ref> जाने
मदद से असलहों <ref>हथियार</ref> की जो दुकां अपनी चलाता है
मुहब्बत, दोस्ती, एहसास, जज़्बा, फ़िक्र क्या जाने?
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