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<poem>'''दे रहा हूँ शुभकामनाएँअंगूठा भर हैं नन्हे मियाँ'''
भय से थरथराती हुई आँखों में
कई रात गुजारने के बाद
बारूद में भुने हुए बच्चों के
हाथ-पांव समेट रहे हैं
गुजरात के नन्हे मियाँ
बच्चों की मुस्कान कोपिछली चार पीढ़ियों से किसानों के खलिहान कोपटाखों में रचे-बसे नन्हे मियॉ कहते हैंऔरतों के आसमान कोचिड़ियों बच्चे खुदा की उड़ान कोनियामत हैं दे रहा इनकी निगाहों से ही चुराकर भरता हूँ शुभकामनाएँ।पटाखों में रोशनीजब बच्चे ही नहीं रहे तब कहाँ से आएगी पटाखों में रोशनी
अब वे नहीं बनाएंगे पटाखे
देश नन्हे मियाँ के विधान कोपटाखे न बनाने से संसद के ईमान कोकहीं कुछ भी नहीं बिगड़ेगाजीवन के संविधान कोबाजार का पेट तो भर जाएगामनुष्य चीन और अमरीका के सम्मान को दे रहा हूँ शुभकामनाएँ।पटाखों से
प्रेम कभी-कभार उनके घर के उफान कोसामने से गुजरते हुएहृदय की जुबान कोअचानक ठहर जाऐंगे किसी के कदमसंस्कृति और उसके कानों में गूँजेगी वही आवाजकल ही तो दिया था / आज फिर आ गयाफोकट की आन कोलत बहुत बुरी होती है/ले अब मत अइयो ....... धर्म हाँ सम्भाल के इमान कोजलइयोंबहुत खतरनाक खेल है बारूद का इस कविता में एक सुधार जरूरी है मित्रोंनन्हे मियाँ केवल गुजरात के नहीं हैंवे मेरठ के भी थेमुरादाबाद के भी और मुम्बई के भी लहौर और इस्लामाबाद में भी रहते हैंनन्हे मियॉजो अब नहीं बनाएंगे पटाखे  नन्हे मियॉन तो मुसलमान हैं न हिन्दूसिर्फ अंगूठाभर हैं दे रहा हूँ शुभकामनाएँÄजिस पर पुती हुई है स्याही ।
कलैण्डर के दिनमान को
इतिहास के वर्तमान को
भविष्य के अनुमान को
भोर के अनुसंधान को
दे रहा हूँ शुभकामनाएँ।
</poem>
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