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एक नए घमासान में / नारायण सुर्वे

1,602 bytes added, 15:38, 15 दिसम्बर 2010
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यह मेरा भी देश; और ये बौने-बौने लोग
अपना ही घर हो आया ऐसा बौनापन; तो क्या करें ?
 
यहाँ की बस्तियों को सूँघनेवाला यह चरम चट्टानी अँधेरा
कंदील को मड़िया पर लटका कर न घूमें; तो क्या करें ?
 
परमात्मा की सन्निधि चाहनेवाली यह पुरातन संस्कृति
हम अपना ही मज़ाक न उड़ाएँ; तो क्या करें ?
 
ज़िन्दगी भर जिन्हें दुख, दैन्य, दरिद्रता ही मिली हो
वे हर तफ़्सील के साथ सब कुछ को नहिं नकारें; तो क्या करें ?
 
आश्वस्त शब्दों पर मेरा भी विश्वास नहीं रहा
हर एक सन्दर्भ से बदबू आने लगी; तो क्या करें ?
 
युद्धबन्दियों की तरह पुल पर बहनेवाला लोगों का रेला
रोशनी के फूल उनके हाथों पर न रखें; तो क्या करें ?
 
रुक तो सकता नहीं; और आपकी ऐसी उदासी
एक नए संघर्ष के लिए घमासान में न घुसें; तो क्या करें ?
'''मूल मराठी से निशिकांत ठकार द्वारा अनूदित'''
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