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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार अनिल|संग्रह=और कब तक चुप रहें / कुमार अनिल}}{{KKCatGhazal}}<poemPoem>हर शख्श शख़्स है लुटा- लुटा हर शय तबाह हैये शह्र कोई शह्र है या क़त्ल-गाह क़त्लगाह है
जिसने हमारे ख़ून से खेली हैं होलियाँ
ये शहरे सियासत है यहाँ आजकल 'अनिल'
इंसानियत की बात भी करना गुनाह है </poem>