भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: चमकती चिंगारियाँ-सी चकरा रहीं आँखों की पुतलियों में नज़र पे चिपक…
चमकती चिंगारियाँ-सी चकरा रहीं आँखों की पुतलियों में
नज़र पे चिपके हुए हैं कुछ चिकने-चिकने से रोशनी के धब्बे
जो पलकें मुँदूँ तो चुभने लगती हैं रोशनी की सफ़ेद किरचें

मुझे मेरे मखमली अँधेरों की गोद में डाल दो उठाकर
चटकती आँखों पे घुप अँधेरों के फाये रख दो
यह रोशनी का उबलता लावा न अन्धा कर दे.
6
edits