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Kavita Kosh से
खुद ही लड़का सा मैं निकल आया
दौर-ए-वापस तही वाबस्तगी गुज़ार के मैंअहद-ए-वापस तगी वाबस्तगी को भूल गया
यानी तुम वो हो, वाकई, हद है
मैं तो सच-मुच सचमुच सभी को भूल गया
रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निबाहनी होती
मुस्कुराए, हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती
अब तो खाली है रूह, जज़्बों से
अब भी क्या हम तबाद तपाक से न मिले मिलें
शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी