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|रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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नदी किनारे पानी में लड़की एक नहाती है
देख देख के अपने आप को शरमाती लाजियाती है

खेल रही है वो पानी से और उससे पानी
ऐसा लगता है जलपरियों की कोई रानी
गोरे गोरे बदन से उसके निकल रहे हैं शोले
डोल रही है उसकी जवानी खाती है हिचकोले

मस्त जवानी से नदिया के पानी को गरमाती है
नदी किनारे पानी में लड़की एक नहाती है

पानी उसके बदन को चूमे, चूम चूम कर झूमे
मछली की तरहा तैरे वह इधर उधर भी घूमे
नागिन की तरहा पानी की लहरों पे लहराए
पेड़ पे जैसे कोई डाली फूलों की बलखाए

पानी ले ले कर हाथों में नदिया का उछ्लाती है
नदी किनारे पानी में लड़की एक नहाती है

भीगी साड़ी के पीछे से झाँक रहा है जोबन
सोच रही है देखे कोई आकर उसका यौवन
कोई मुझको अंग लगाए कोई मुझसे खेले
अंग अंग छुए वह मेरा और बाहों में ले ले

तन को थिरकाती है अपने और मन को बहलाती है
नदी किनारे पानी में लड़की एक नहाती है
</poem>
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