भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चू बाबू / कैलाश गौतम

37 bytes added, 07:45, 4 जनवरी 2011
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}
</poem>
बच्चू बाबू एम.ए. करके सात साल झख मारे
खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई, उल्लू बने बिचारे
खेत बेंचकर पढ़े पढ़ाई उल्लू बने बिचारेकितनी अर्ज़ी दिए न जाने, कितना फूँके तापेकितनी धूल न जाने फाँके, कितना रस्ता नापे
लाई चना कहीं खा लेते, कहीं बेंच पर सोते
बच्चू बाबू हूए छुहारा, झोला ढोते-ढोते
कितनी अर्ज़ी दिए न जाने कितना फूँके तापेउमर अधिक हो गई, नौकरी कहीं नहीं मिल पाईचौपट हुई गिरस्ती, बीबी देने लगी दुहाई
कितनी धूल न जाने फाँके कितना रस्ता नापे  लाई चना कहीं खा लेते कहीं बेंच पर सोते बच्चू बाबू हूए छुहारा झोला ढोते-ढोते  उमर अधिक हो गई नौकरी कहीं नहीं मिल पाई चौपट हुई गिरस्ती बीबी देने लगी दुहाई  बाप कहे आवारा , भाई कहने लगे बिलल्ला नाक फुला भौजाई कहती , मरता नहीं निठल्ला  खून ग़‍रम हो गया एक दिन कब तक करते फाका लोक लाज सब छोड़-छाड़कर लगे डालने डाका
ख़ून ग़‍रम हो गया एक दिन, कब तक करते फाका
लोक लाज सब छोड़-छाड़कर, लगे डालने डाका
बड़ा रंग है, बड़ा मान है बरस रहा है पैसा
 सारा गाँव यही कहता है बेटा हो तो ऐसा।ऐसा ।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,627
edits