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रास्ते में एक अन्धे को गिराकर आए जो/ वे घड़े ढ़ोने लगे हैं मन्दिरों में शाम को।
'''शोषणमुक्त समाज की परिकल्पना'''तेवरी काव्यान्दोलन ऐसे समाज की परिकल्पना करता है जो रूढ़ि और शोषण से मुक्त हो। इसीलिए तेवरियों में प्रत्येक प्रकार के अन्याय और अनीति का विरोध करनेवाली भवनाएं व्याप्त हैं। समाज के अन्तर्गत तेवरी विश्व समाज को समेटती हुई उसमें से दासता और परतन्त्रता को निकाल फेंकना चाहती है। प्रत्येक प्रकार के वैषम्य और अनीति का विरोध करना तेवरी का स्वभाव है। जहाँ कहीं भी शोषण है, वहीं तेवरी उसे मिटाने के लिए संघर्षरत हैं -
विश्व से शोषण मिटे अब यह हमारी मांग है/ युद्ध का खतरा हटे अब यह हमारी माँग है।
नई व्यवस्था लाएगी बेंजामिन की बात/ इन्कलाब तक जाएगी बेंजामिन की बात/ नहीं सुरक्षित रह सकें इन महलों में आप/ ईंट-ईंट जब गाएगी बेंजामिन की बात।
'''भाषा : एक सशक्त माध्यम'''तेवरी में भाषा का विशेष महत्व है। वह दो बातों के लिए प्रतिबद्ध है। एक सामान्य जनता की भाषा को अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में अपनाने के प्रति आग्रह और दो - शब्द को हथियार की प्रकृति से भरने की चाह। वस्तुतः ऐसा करके ही कविता को वर्णन और संकेत की भूमिका से बाहर निकाल कर प्रहार की भूमिका दी जा सकती है। तेवरी की भाषा सम्बन्धी घोषणा है-
शब्द को पत्थर सरीखा आजमाने का समय है/ सिरफिरों को चोट देकर सिर उठने का समय है।
समकालीन कविता का सबसे नया परिवर्तन तेवरी है। पिछले कुछ दशकों से कविता के तुकान्त रूप को लेकर जिस परिवर्तन का आभास मिल रहा था और जो नए भावबोध के गीत के साथ ने सिरे से उभरना शुरू हुआ था, उस परिवर्तन को तेवरी ने नया व्यवस्थित रूप दिया है और कविता को जमीन से जोड़ने की दिशा में प्रयास किया है। समकालीन कविता इससे निश्चय ही समृद्ध हुई है।
'''[स्रोत: हिंदी कविता- आठवाँ नवाँ दशक: ऋषभदेव शर्मा : १९९४ : पृ. १५०-१५८]'''प्रस्तुति: चंद्र मौलेश्वर प्रसाद