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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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पी के आँखों से मसरूर हो जाएंगे
सारी दुनियां में मशहूर हो जाएंगे

आप मंजिल पे मुझको अगर मिल गए
छाले पैरों के काफ़ूर हो जाएंगे

ज़ख़्म दिल के हरे थे हरे हैं अभी
दो दवा वरना नासूर हो जाएंगे

आप आ जाएंगे पास मेरे अगर
दिल में जितने हैं ग़म दूर हो जाएंगे

जब ख़यालों से ख़्वाबों में आने लगे
तुमसे मिलने को मजबूर हो जाएंगे

तुम से यूं ही जो नज़रें मिलाते रहे
बिन पिये हम तो मख़मूर हो जाएंगे

नज़्म उनपे न कहना 'रक़ीब' अब कभी
कुछ तो हैं और मग़रूर हो जाएंगे
</poem>
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