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जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ।फूली नही बदन में समाती हैं रोटियाँ।।आँखें परीरुख़ों से लड़ाती हैं रोटियाँ।सीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियाँ।। जितने मज़े हैं सब ये दिखाती हैं रोटियाँ ।।1।।
रोटी से जिनका नाक तलक पेट है भरा ।करता फिरे है क्या वह उछल-कूद जा बजा ।।दीवार फ़ाँद कर कोई कोठा उछल गया ।ठट्ठा हँसी शराब, सनम साक़ी, उस सिवा ।। सौ-सौ तरह की धूम मचाती हैं रोटियाँ ।।2।। जिस जा पे हाँडी चूल्हा तवा और तनूर है ।ख़ालिक़ के कुदरतों का उसी जा ज़हूर है ।।चूल्हे के आगे आँच जो जलती हुज़ूर है ।जितने मज़े हैं नूर सब ये दिखाती में यही ख़ास नूर है ।। इस नूर के सबब नज़र आती हैं रोटियाँ।।3।।
दुनिया में अब बदी न कहीं और निकोई है