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म्हारो बसंत / मंगत बादल

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मंगत बादल |संग्रह=}}[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>थारै आवंतो हुसी बसंत
फागण में ।
अठै तो भाया असाढ में
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