भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
संग्रह=
}}
{{KKCatGazalKKCatGhazal}}
<poem>
 
 
 
 
 
न वो ज़बान की शोखी मेरे बयान में है
न अब हुस्ने समाअत किसी के कान में है
मेरा लहू भी मेरे पाँव के निशान में है
अतीत बीत चुका है और भविष्य अनदेखा
जो ज़िन्दगी की हकीकत है वर्तमान में है
न जाने कौन सी आंधी बिखेर के रख दे
हर एक शख्स यहाँ रेत के मकान में है</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits