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न वो ज़बान की शोखी मेरे बयान में है
न अब हुस्ने समाअत किसी के कान में है
मेरा लहू भी मेरे पाँव के निशान में है
जो ज़िन्दगी की हकीकत है वर्तमान में है
न जाने कौन सी आंधी बिखेर के रख दे
हर एक शख्स यहाँ रेत के मकान में है</poem>