भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''पाँवलिया-- कवि का गृह-गाँव है'''
 
मेरे गृह से सुन पडती गिरि-वन से आती
हँसी स्वच्छ नदियों की, सुन पडती विपिनों की,
झरती वर्षा, आ बसंत कोमल फूलों से,
मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल
निशी दिन मेरे विपिनो में उडते उड़ते रहते ।
कोलाहल से दूर शांतनीरव शैलों पर,मेरा गृह है, जहाँ बच्चियों-सी हँस-हँस कर,नाच-नाच बहती हैं छोटी-छोटी नदियाँ,जिन्हें देखकर, जिनकी मीठी ध्वनियाँ सुनकर,मुझे ज्ञात होता जैसे यह प्रिय पृथ्वी तो,अभी-अभी ही आई है, इसमें चिंता कोऔर मरण को, स्थान अभी कैसे हो सकता है ?
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,779
edits