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Kavita Kosh से
जो हमपे गुज़री है ऐ ‘चाँद’ हम समझते हैं
जो साहिबाने बसीरत है हैं संग में ऐ `चाँद’
छुपे हुए हैं अज़ल से सनम समझते हैं
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