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|रचनाकार=चाँद हादियाबादी
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यहाँ तो लोग बदलते हैं मौसमों की तरह
कि नफ़रतें ही बरसती हैँ बारिशों की तरह

महब्बतों के जनाज़े उठे यहाँ कब के
ख़ुलूस टूट के बिखरा है आईनों की तरह

है मिलता जब भी कोई बेवजह गले हमसे
दिखाई देता है वो हमको दोस्तों की तरह

मैँ सोचता हूँ तो फिर सोचता ही रहता हूँ
मेरा वजूद हो जैसे कि पत्थरों की तरह

जहाँ में जिसको भी अपना बनाके देखा है
बस उसने रंग ही बदले हैं गिरगिटों की तरह

नज़र से सादा-सा मासूम-सा जो दिखता था
हमें तो लगता है वो शख़्स क़ातिलों की तरह

चमन में फूल खिलेंगे हमें यक़ीं है अभी
हमारी हसरतें ज़िन्दा हैं हसरतों की तरह

गिला करें तो करें तुमसे किस तरह हम भी
निभाई दोस्ती तुमने भी दुश्मनों की तरह


जो अपनी ऐनकें भी साफ़ कर नहीं पाते
उन्हें तो 'चाँद' भी दिखता है बादलों की तरह
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