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सुझाई गयी कविताएं

3,937 bytes removed, 14:42, 16 अगस्त 2006
 
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बंधा हुआ ।
 
वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ ।
 
 
 
जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का,
 
कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ ।
 
 
 
कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल खिला गई,
 
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है, नदी के पास खड़ा हुआ ।
 
 
 
मुझे हादिसों ने सजा-सजा के बहुत हसीन बना दिया,
 
मिरा दिल भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेंहदियों से रचा हुआ ।
 
 
 
वही शहर है वही रास्ते, वही घर है और वही लान भी,
 
मगर इस दरीचे से पूछना, वो दरख़्त अनार का क्या हुआ ।
 
 
 
वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे,
 
किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ ।
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।
 
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।
 
 
 
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
 
जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा ।
 
 
 
कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,
 
तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।
 
 
 
मैं खूदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,
 
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।
 
 
 
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बु, ज़मीनो-आस्माँ,
 
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।
हमारा दिल सबरे का सुनहरा जाम हो जाए ।
 
चराग़ों की तरह आँखें जलें, जब शाम हो जाए ।
 
 
 
मैं ख़ुद भी अहतियातन, उस गली से कम गुजरता हूँ,
 
कोई मासूम क्यों मेरे लिए, बदनाम हो जाए ।
 
 
 
अजब हालात थे, यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर,
 
मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए ।
 
 
 
समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको,
 
हवायें तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए ।
 
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा,
 
परिंदा आस्माँ छूने में जब नाकाम हो जाए ।
 
 
 
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
 
न जाने किस गली में, ज़िंदगी की शाम हो जाए ।
 
 
 
बशीर बद्र
 
जयप्रकाश मानस
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