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Kavita Kosh से
गमे-उल्फ़त गमे-दुनिया मे समोना चाहा!
वही अफ़साने मेरी सिम्त रवां हैं अब तक,
वही शोले मेरे सीने में निहां हैं अब त।तक।
वही बेसूद खलिश है मेरे सीने मे हनोज़,
वही आंखें मेरी जानिब निगरां हैं अब तक।
मुज़महिल रूह को अंदाजे-जुनूं मिल न सका।
वही बेरूह कशाकश वही बेचैन खयाल।