भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ये समझकर तुझे ऐ मौत लगा रक्खा है
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा
 
ऐ दिले शेफ़्ता में आग लगाने वाले
तर्के आदत से मुझे नींद नहीं आने की
कहीं नीचा न हो ऐ गौर<ref>क़ब्र</ref> सिरहाना तेरा
मैं जो कहता हूँ उठाए हैं बहुत रंजेफ़िराक़