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|संग्रह=बिसात-ए-रक़्स / मख़दूम मोहिउद्दीन
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कहो हिन्दुस्ताँ की जय । कहो हिन्दुस्ताँ की जय ।
क़सम है ख़ून से सींचे हुए रंगी गुलिस्ताँ की
ज़मीने पाक अब नापाकियों को ढो नहीं सकती
वतन की शम्मे आज़ादी कभी गुल हो नहीं सकती ।
कहो हिन्दुस्ताँ की जय । कहो हिन्दुस्ताँ की जय ।
वो हिन्दी नौजवाँ याने अलम्बरदारे आज़ादी
एक ऐसी नाव तूफ़ानों ने ख़ुद जिसको सम्भाला है ।
वो ठोकर जिससे गीती<ref>संसार</ref> लरज़ा बरअन्दाम<ref>काँप कर सुन्न हो जाती है</ref> रहती है ।
कहो हिन्दुस्ताँ की जय । कहो हिन्दुस्ताँ की जय ।
वो धारा जिसके सीने पर अमल की नाव बहती है ।
बदल दी नौजवाने हिन्द ने तक़दीर ज़िन्दाँ की
मुजाहिद की नज़र से कट गई ज़ंजीर ज़िन्दाँ की ।
कहो हिन्दुस्ताँ की जय । कहो हिन्दुस्ताँ की जय ।