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Kavita Kosh से
<poem>अँधेरे में जो कदम बढ़ते हैं
वे उजाले की आस्था से
भरपूर होते हैं
ज्योति के चमचमाते
हस्ताक्षर कर देते हैं
एक शस्त्र बन जाता है
जो अँधेरे अंधेरे के खिलाफ
चाकू की तरह तन जाता है
हथेली पर रखे आंवले
एक दिन मशाल बन जाते हैं !
फिर लोग उनके रोशनी में
अपना रास्ता बनाते हैं! '''अनुवाद - रामधन "अनुज"'''।</poem>