भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी वो जैसे सर्दियों में इबारत सी<br>गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों कोहिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी<br><br>
वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को<br>उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकतीलबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी<br><br>
उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती<br>पहाड़ी सजाये बाज़ुओं पर हज़ारों साल की कोई इमारत बाज़ वो मैदाँ में तन्हा थाचमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी<br><br>
सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो मैदाँ में तन्हा था<br>मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त हैचमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी<br><br>
मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त है<br>कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी<br><br> खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा<br>रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी<br>
रचनाकाल - 1980
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits