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|रचनाकार= तुफ़ैल चतुर्वेदी
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<poem>वो बिछड़ते वक़्त होठों से हँसी लेता गया
मुझमें साँसें छोड़ दीं, बस ज़िन्दगी लेता गया

वो भी होठों पर लिये आया था दरिया अब की बार
मैं भी मिलते वक़्त सारी तिश्नगी लेता गया

धूप का अहसास यूँ रहता है मेरी रूह में
एक साया जैसे सारी छाँव ही लेता गया

चाँद और फिर चाँद पूनम का किसे उम्मीद थी
रौशनी देने के बदले रौशनी लेता गया

एक गहरा घाव जैसे तोड़ दे राही का दम
मेरा माज़ी आने वाली ज़िन्दगी लेता गया
<poem>
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