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Kavita Kosh से
परीशाँ होके मेरी खाक आखिर दिल न बन जाये<br />
जो मुश्किल अब हे या रब फिर वही मुश्किल न बन जाये
मेरा सोज़े दरूं फिर गर्मीए महेफिल न बन जाये
खटक सी है जो सीने में गमें मंज़िल न बन जाये
कहीं इस आलमें बे रंगो बूमें भी तलब मेरी<br />
वही अफसाना दुन्याए महमिल न बन जाये
कि ये टूटा हुआ तारा महे कामिल न बन जा