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दोहावली / तुलसीदास/ पृष्ठ 3

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'''दोहा संख्या 31 21 से 14030'''  तुलसी हठि हठि कहत नित चित सुनि हित करि मानि। लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि।21।  बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु। होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।22।  प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम। तुलसी तेरो है भलेा आदि मध्य परिनाम।23।  दंपति रस दसन परिजन बदन सुगेह। तुलसी हर हित बरन सिसु संपति सहज सनेह।24। बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास। रामनाम बर बरन जुग सावन भादव मास।25।  राम नाम नर केसरी कनककसिपु कलिकाल। जापक जन प्रहलाद जिमि पालिहि दलि सुरसाल।26।  राम नाम किल कामतरू राम भगति सुरधेनु। सकल सुमंगल मूल जग गुरूपद पंकज रेनु।27।  राम नाम कलि कामतरू सकल सुमंगल कंद। सुमिरत करतल सिद्धि सब पग पग परमानंद।28।  जथा भूमि सब बीजमय नखत निवास अकास। रामनाम सब धरममय जानत तुलसीदास।29।  सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन। नाम सुप्रेम पियुष हद तिन्हहुँ किए मन मीन।30।  
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