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सुन्दर बदन , सरसीरूह सुहाए नैन, मंजुल प्रसून माथें मुकुट जटनि के। '''(वन के मार्ग में)'''
अंसनि सरासन, लसत सुचि सर कर, प्ुारतें निकसी रघुबीर बधू धरि धीर दए मगमें डग द्वै।
तून कटि झलकीं भरि भाल कनीं जलकी, मुनिपट लूटक पटनि के।। पुट सूखि गए मधुराधर वै।।
नारि सुकुमारि संग फिरि बूझति हैं, जाके अंग उबटि कैचलनो अब केतिक, पर्नककुटी करिहैं कित ह्वै?
बिधि बिरचैं बरूथ बिद्युतछटनि के।। तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।11।
गोरेको बरनु देखें सोनो न सलोनेा लागै, साँवरे बिलोकें गर्ब घटत धटनि के।16।
जलको गए लक्खनु, हैं लरिका,
परिखौ, पिय! छाँह घरीक ह्वै ठाढ़े।
पोेंछि पसेउ बयारि करौं ,
बलकलअरू पाय पखारिहौं भूभुरि-बसन, धनु-बान पानि, तून कटि, डाढ़े।।
रूपके निधान घन-दामिनी-बरन हैं। तुलसी रघुबीर प्रियाश्रम जानि कै
तुलसी सुतीय संग, सहज सुहाए अंग, बैठि बिलंब लौं कंटक काढ़े।
नवल कँवलहू तें केामल चरत हैं।। जानकीं नाहको नेहु लख्यो, पुलको तनु, बारि बिलोचन बाढ़े।12।
औरै सो बसंतु, और रति, औरै रतिपतिठाढ़े हैं नवद्रुमडार गहें,
मूरति बिलोकें तन-मनके हरन हैं। धनु काँधे धरें, कर सायकु लै।
तापस बेषै बनाइ पथिक पथें सुहाइबिकटी भृकुटी, बड़री अँखियाँ,
चले लोकलोचननि सुफल करन हैं।17। अनमोल कपोलन की छबि है।।
तुलसी अस मूरति आनु हिएँ,
बनिता बनी स्यामल गौर के बीच ,जड! डारू धौं प्रान निछावरि कै।।
बिलोकहुश्रमसीकर साँवरि देह लसै, री सखि! मोहि-सी ह्वै। मनेा रासि महा तम तारकमै।13।
मनुजोगु न कोमल, क्यों चलिहै,
सकुचाति मही पदपंकज छ्वै।। जलजनयन, जलजानन जटा है सिर,
तुलसी सुनि ग्रामबधू बिथकीं, पुलकीं तन, औ चले लोचन च्वै। जौबन -उमंग अंग उदित उदार है।।
सब भाँति मनोहर मोहनरूपसाँवरे-गोरेके बीच भामिनी सुदामिनी-सी,
अनूप हैं भूपके बालक द्वै।18। मुनिपट धारैं , उर फूलनिके हार हैं।।
करनि सरासन सिलीमुख, निषंग कटि,
साँवरे-गोरे सलेाने सुभायँ, मनोहरताँ जिति मैनु लियो अति ही अनूप काहू भूपके कुमार है।
बान-कमान, निषंग कसें, सिर सोहैं जटा, मुनिबेषु कियेा है।। तुलसी बिलोकि कै तिलोकके तिलक तीनि
संग लिएँ बिधुबैनी बधू, रतिको जेहि रंचक रूप दियो है। रहे नरनारि ज्यों चितेरे चित्रसार हैं।14।
पायन तौ पनहीं न , पयादेहिं क्यों चलिहैं, सकुचात हियो है।19।
आगे साँवरो कुँवरू गोरो पाछें-पाछें,
रानी मैं जानी अयानी महाआछे मुनिवेष धरें, पबि-पाहनहू तें कठोर हियो है। लाजत अनंग हैं।
राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो बान बिसिषासन, बसन बनही के कटि , कह्यो तियको जेहिं कान कियो है।।
ऐसी मनेाहर मूरति ए कसे हैं बनाइ, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो है। नीके राजत निषंग हैं।।
आँखिनमें सखि! राखिबे जोगु साथ निसिनाथ मुखी पाथनाथनंदिनी-सी, इन्हैं किमि कै बनबासु दियो है।20।
तुलसी बिलोकें चितु लाइ लेत संग है।
आनँद उमंग मन, जौबन-उमंग तन,
रूपकी उमंग उमगत अंग-अंग है।15।
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