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|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
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सखि, कहाँ जाउँ रे
 
मोको कहाँ ठाउँ रे
 
आधा मन घरे मोरा
 
आधा मन बाहिरे
 
आधा मन लगा मोरा
 
कुँआरे के साँवरे
 
सखि, कहाँ जाउँ रे
 
मोको कहाँ ठाउँ रे ?
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