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प्रिया प्रसाद / घनानंद

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राधा राधा राधा कहौं ।
कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥
राधा की बलिहार भई हौं ।
राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥
 
राधा बिन कछु और न सूझौं ।
सुरझि सुरझि अभिलाष उरुझौं ॥५१॥
 
राधा आँखिन आगे रहै ।
राधा मन कौ मारग गहै ॥५२॥
 
रोम रोम राधा की व्यापनि ।
रसिक जीवनी राधा जापनि ॥५३॥
 
राधा रटि सोई ह्वै जाऊँ ।
तब पाऊँ राधा को गाऊँ ॥५४॥
 
राधा बरसाने की जाई ।
ह्वै सँकेत नंदी सुर आई ॥५५॥
 
राधा की हौं कहौं कहा लौं ।
ब्रजबन राधामई जहाँ लौं ॥५६॥
 
राधा के हित वंशी बाजै ।
राधा राग भरे सुख साजै ॥५७॥
 
राधा बंसी की ठकुरायनि ।
सुर पावड़े बिछावति चायनि ॥५८॥
 
नाम गाम सब राधा नेरैं ।
राधा ही के बसौं बसेरैं ॥५९॥
 
यौ राधा न श्याम बिन रहै ।
मेरे मन मैं राधा महै ॥६०॥
 
या राधा की महा अगमगति ।
प्रेम पुंज मतिवती परम रति ॥६१॥
 
या राधा कौ प्रेम कहै को ।
या राधा कौ नेम गहै को ॥६२॥
 
राधा रमन रमन हू राधा ।
एकमेक ह्वै रहे अबाधा ॥६३॥
 
मिलन बिछोह कछु न सुधि परैं
अचिरज रीति राधिका धरैं ॥६४॥
 
या राधा कौ रस अपरस है ।
रस मूरति कौ परम सरस है ॥६५॥
 
'''दोहा'''
कहिबो सुनिबो समझिबो राधा ही कौ होय ।
राधा के हित की कथा भूलि सुमिरिहै सोय ॥६६॥
 
राधा अकथ कथा कहौं, यह कहिबे की नाहिं ।
राधा के जिय की दसा प्रीतम के हिय माहिं ॥६७॥
 
व्रजमोहन आनंदघन, वृंदावन रसधाम ।
अभिलाषनि बरसत रहै, राधा हित अभिराम ॥६८॥
 
मधुर केलि रस-झेलि सों, रसना स्वाद सुरूप ।
सुफल सुवानी वेलि को, राधा नाम अनूप ॥६९॥
 
मेरे मन दृग रीझि की, राधा ही कों बूझि ।
राधा के मन रीझि की, मोहिं बूझि अरु सूझि ॥७०॥
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