भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी
|संग्रह=
}}{{KKVID|v=w5hsLKUkyZI37pw_VSG-cg}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
भूले है रफ़्ता-रफ़्ता उन्हे मुद्दतो में हम
किश्तो में खुदखुशी ख़ुदकुशी का मज़ा हमसे पूछिए
आग़ाज़-ए-आशिकी का मज़ा आप जानिए
अंजाम-ए-आशिकी का मज़ा हमसे पूछिए
जलते दियो में जलते घरो जैसी ज़ौ लौ कहा
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए