भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओस के दिये / राजश्री

1,056 bytes added, 05:17, 8 अप्रैल 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजश्री }} <poem> पलकों की देहरी पर किसी ने रख दिये ओ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजश्री
}}
<poem>
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के दिये
पुतलियो के दरवाजे खुले
मनुहार के जुगनू झिलमिलाये

पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के मोती
पुतलियों के दरवाजे खुले
सुधियों के हंस लहराये

पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दी ओस की मंजरियाँ
पुतलियों के दरवाजें खुले
प्रीत के बसंत घिर आये

पलकों की देहरी पर किसी ने
छेड़ दी ओस की रागिनी
पुतलियों के दरवाजे खुले
उमंगों के पपीहे बौराये
</poem>