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{{KKRachna
|रचनाकार=राजश्री
}}
<poem>
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के दिये
पुतलियो के दरवाजे खुले
मनुहार के जुगनू झिलमिलाये
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के मोती
पुतलियों के दरवाजे खुले
सुधियों के हंस लहराये
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दी ओस की मंजरियाँ
पुतलियों के दरवाजें खुले
प्रीत के बसंत घिर आये
पलकों की देहरी पर किसी ने
छेड़ दी ओस की रागिनी
पुतलियों के दरवाजे खुले
उमंगों के पपीहे बौराये
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=राजश्री
}}
<poem>
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के दिये
पुतलियो के दरवाजे खुले
मनुहार के जुगनू झिलमिलाये
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दिये ओस के मोती
पुतलियों के दरवाजे खुले
सुधियों के हंस लहराये
पलकों की देहरी पर किसी ने
रख दी ओस की मंजरियाँ
पुतलियों के दरवाजें खुले
प्रीत के बसंत घिर आये
पलकों की देहरी पर किसी ने
छेड़ दी ओस की रागिनी
पुतलियों के दरवाजे खुले
उमंगों के पपीहे बौराये
</poem>