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{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
}}
<poem>
दिल था जिसे तलाशता वो प्यार न मिला,
झंक्रित जो कर दे दिल के तार,वो दिलदार न मिला।
लहरें चली थीं चांद को लेने आगोश में,
इज़हार करके थक गईं,वस्ल-ए-यार न मिला।
मुक्ति की चाह में जो भटकती हैं तंग गलियों में,
वो रास रचैया उन्हें भी श्याम न मिला।
जल बिन तड़पती मीन सी तड़पी थी राधिका,
वन में तड़पती सीता को भी राम न मिला।
अस्मिता तक लगा दी जुआं के दांव पर,
मेरी आत्मा का फिर भी खरीदार न मिला।
अभिशप्त चकवा-चकई रातों में हैं विलखते
अमा की रात,चांद का उजियार न मिला।
<poem>
{{KKRachna
| रचनाकार=रमा द्विवेदी
}}
<poem>
दिल था जिसे तलाशता वो प्यार न मिला,
झंक्रित जो कर दे दिल के तार,वो दिलदार न मिला।
लहरें चली थीं चांद को लेने आगोश में,
इज़हार करके थक गईं,वस्ल-ए-यार न मिला।
मुक्ति की चाह में जो भटकती हैं तंग गलियों में,
वो रास रचैया उन्हें भी श्याम न मिला।
जल बिन तड़पती मीन सी तड़पी थी राधिका,
वन में तड़पती सीता को भी राम न मिला।
अस्मिता तक लगा दी जुआं के दांव पर,
मेरी आत्मा का फिर भी खरीदार न मिला।
अभिशप्त चकवा-चकई रातों में हैं विलखते
अमा की रात,चांद का उजियार न मिला।
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