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तुम मेरे साथ रहो /रमा द्विवेदी

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तुम मेरे साथ रहो घर में उजाला बनकर,
यूं मुझे दर्द न दो दर्द की हाला बनकर ।
यूं ही चाहेगे तुम्हें कयामत के आने तक,
यूं मुझे छोड न दो भंवर में धारा बनकर।
जिधर भी देखती हूं तू ही तू नज़र आये,
मैं सबको देखती हूं तेरा नाज़ारा बनकर।
तेरे ही इश्क में क्या-क्या नहीं मैं सहती हूं,
मैं हर घडी से गुजरती हूं अंगारा बनकर।
मेरी सांसों की नैया डूबती भंवर में सनम,
कि अब तो आके बचा ले तू किनारा बनकर ।
तेरे लिए तो हमने इस जहां को छोड दिया,
कि अब तो दर्श दिखा कोई सितारा बनकर।

<poem>
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