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{{KKRachna
|रचनाकार = मलूकदास
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अब तेरी सरन आयो राम॥१॥
जबै सुनियो साधके मुख, पतित पावन नाम॥२॥
यही जान पुकार कीन्ही अति सतायो काम॥३॥
बिषयसेती भयो आजिज कह मलूक गुलाम॥४॥