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|संग्रह=फूल नहीं, रंग बोलते हैं-1 / केदारनाथ अग्रवाल
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चम्पई आकाश तुम हो
 
हम जिसे पाते नहीं
 
बस देखते हैं ;
 
रेत में आधे गड़े
 
आलोक में आधे खड़े ।
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