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<poem>
ये शरद के चाँद-से उजले धुले-से पाँव,
मेरी गोद में !
ये लहर पर नाचते ताज़े कमल की छाँव,
मेरी गोद में !
दो बड़े मासूम बादल, देवताओं से लगाते दाँव,
मेरी गोद में !
रसमसाती धूप का ढलता पहर,ये शरद हवाएँ शाम की, झुक-झूमकर बरसा गईंरोशनी के चाँदफूल हरसिंगार-से उजले धुले,प्यार घायल साँप-से पाँवसा लेता लहर,<br>मेरी अर्चना की धूप-सी तुम गोद में !<br>लहरा गईंये लहर पर नाचते ताजे कमल ज्यों झरे केसर तितलियों के परों की छाँवमार से,सोनजूही की पँखुरियों से गुँथे, ये दो मदन के बान,<br>मेरी गोद में !<br>हो गये बेहोश दो बड़े मासूम बादलनाजुक, देवताओं से लगाते दाँवमृदुल तूफ़ान,<br>मेरी गोद में !<br><br>
रसमसाती धूप का ढलता पहर,<br>ये हवाएँ शाम ज्यों प्रणय कीलोरियों की बाँह में, झुक-झूमकर बरसा गयीं<br>रोशनी के फूल हरसिंगार-सेझिलमिलाकर औ’ जलाकर तन,<br>प्यार घायल साँप-सा लेता लहरशमाएँ दो,<br>अर्चना अब शलभ की धूप-सी तुम गोद में लहरा गयीं<br>आराम से सोयी हुईंज्यों झरे केसर तितलियों या फ़रिश्तों के परों की मार से,<br>छाँह मेंसोनजूही की पँखुरियों से गुँथेदुबकी हुई, ये सहमी हुई, हों पूर्णिमाएँ दो मदन ,देवताओं के बाननयन के अश्रु से धोई हुईं ।चुम्बनों की पाँखुरी के दो जवान गुलाब,<br>मेरी गोद में !<br>हो गये बेहोश दो नाजुक, मृदुल तूफ़ानसात रंगों की महावर से रचे महताब,<br>मेरी गोद में !<br><br>
ज्यों प्रणय की लोरियों की बाँह में,<br>झिलमिलाकर औ’ जलाकर तन, शमाएँ दो,<br>अब शलभ की गोद में आराम से सोयी हुईं<br>या फ़रिश्तों के परों की छाँह में<br>दुबकी हुई, सहमी हुई, हों पूर्णिमाएँ दो,<br>देवताओं के नयन के अश्रु से धोयी हुईं।<br>चुम्बनों की पाँखुरी के दो जवान गुलाब,<br>मेरी गोद में !<br>सात रंगों की महावर से रचे महताब,<br>मेरी गोद में !<br><br> ये बड़े सुकुमार, इनसे प्यार क्या ?<br>ये महज आराधना के वास्ते,<br>जिस तरह भटकी सुबह को रास्ते<br>हरदम बताये हैं रुपहरे शुक्र के नभ-फूल ने,<br>ये चरण मुझको न दें अपनी दिशाएँ भूलने !<br>ये खँडहरों में सिसकते, स्वर्ग के दो गान, मेरी गोद में !<br>
रश्मि-पंखों पर अभी उतरे हुए वरदान, मेरी गोद में !
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