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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}[[Category:लम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=विनयावली() * [[पद 101 से 110 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 111]]|आगे=विनयावली() * [[पद 101 से 110 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 132]]|सारणी=विनयावली() * [[पद 101 से 110 तक/ तुलसीदास / पृष्ठ 3]]}}<poem>'''* [[पद 111 101 से 120 110 तक''' (111)/ तुलसीदास / पृष्ठ 4]] श्री केसव! क्हि न जाइ का कहिये। देखत रव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये। सून्य भीति पर चित्र , रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे। धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे।। रबिकर-नीर बसै अति दारून मकर रूप तेहि माहीं। बदन -हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं। कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै । तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सेा आपन पहिचानै। <* [[पद 101 से 110 तक /poem>तुलसीदास / पृष्ठ 5]]
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