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{{KKAarti
|रचनाकार=
}}{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyShiv}}<poem>जय केदार उदार शंकर, भव भयंकर दु:ख हरम्।<BR>गौरी, गणपति, स्कन्द, नन्दी, श्री केदार नमाम्यहम्॥ जय ..<BR> शैल सुन्दर अति हिमालय, शुभ्र मन्दिर सुन्दरम्।<BR>निकट मंदाकिनी सरस्वती, जय केदार नमाम्यहम्॥ जय ..<BR> उदक कुण्ड है अधम पावन, रेतस कुण्ड मनोहरम्।<BR>हंस कुंड समीप सुन्दर, जै केदार नमाम्यहम्॥ जय ..<BR> अन्नपूर्णा सह अपर्णा, काल भैरव शोभितम्।<BR>पांच पांडव द्रोपदी सह, जय केदार नमाम्हयम्॥ जय ..<BR> शिव दिगम्बर भस्मधारी, अर्द्धचन्द्र विभूषितम।<BR>शीश गंगा कंठ फणिपति, जै केदार नमाम्यहम्॥ जय ..<BR> कर त्रिशूल विशाल डमरू, ज्ञान गान विशारदम्।<BR>मध्य महेश्वर तुंग ईश्वर, रुद्र कल्प महेश्वरम्॥ जय ..<BR> पंच धन्य विशाल आलय, जै केदार नमाम्यहम्।<BR>नाथ पावन हे विशालम्, पुण्यप्रद हर दर्शनम्॥ जय ..<BR>जय केदार उदार शंकर, पाप ताप नमाम्यहम्॥